Swami Ishananand Saraswati ji Maharaj

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद के ग्राम – सडेली में जन्मे स्वामी ईशाना नन्द सरस्वती जी महराज को बचपन में ही संत का जीवन ब्यतीत कर रहे अपने नाना के यहाँ साधू संतो कि संगत मिली और इस सात्विक माहौल में बचपन ब्यतीत कर रहे स्वामी जी का मन बाल्य अवस्था में ही सामाजिकता से हट कर ईश्वर के प्रति प्रेम व खोज कि ओर अग्रशर हो चला| आगे चल कर निरंतर स्वामी जी का मन माँ के ध्यान व दीन दुखियो के प्रति आसक्ति में लगा रहता था| फिर माँ कि कृपा की  प्राप्ति हेतु किसी श्रेष्ठ गुरु कि खोज में देश दुनिया का भ्रमण करते हुए उन्हें लखनऊ खीच लायी और वर्षो तक लखनऊ के भैसाकुंड शमशान में शाधना करने के बाद स्वामी जी श्रेष्ठ गुरु कि खोज में पुनः देश विदेश का भ्रमण करते रहे परन्तु उन्हें संतुस्टी नहीं मिली, गुरु तो हर गली में मिल जाते है परन्तु सतगुरु का मिलना बड़ा दुर्लभ है और इस अशन्तुस्टी के कारण   स्वामी जी ने अम्बा पार्वती व भगवान् शिव को अपना अभीस्ट गुरु मानकर पुनः शाधना में लीन हो गए| आगे चलकर भगवान् शिव कि प्रेरणा से स्वामी जी ने 1996 में माँ कामाख्या धाम कि स्थापना कि जहा माँ कामाख्या के अतिरिक्त माँ काली और काल भैरव व हनुमान जी तीनो उग्र शक्तियों कि स्थापना जो कि एक गुम्बद के नीचे पुरे विश्व में दुर्लभ है| यह धाम भारत ही नहीं अपितु भारत के बाहर से भी भक्त जन आकर अपनी मनोवांछित कामनाओ को प्राप्त करते है वही माँ के धाम में माँ के दर्शऩ मात्र से  दीन दुखियो के संकट दूर होते है |

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